Friday, August 23, 2013

अनुदित: गीतांजली © Rabindra Nath Tagore

सुनहट हौ आकास भयंकर, कहंऊ न हौ बादल..
धुर्रा उड़ईत हवा कहईछो, कहाँ से अतो सावन।

दूर-दूर तक लउका के तनको न हौ आस..
मईली-ओ अइसन न हौ करिआ, खाली इंजोरिया रात।

कोनो तs महादेव आबs, आकs तांडव कsरs..
दुःख में हौ धरती अप्पन, आके बीपत् हsरs।

अमृत आs बरसा में अब, न बुझाइछो अंतर..
धरती माई के प्यास बुझाsव, करs सागर मंथन।

© All India Bajjika Committee

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