ये विडंबना ही होगी कि हमारी अगली पीढ़ी को अपनी बोली / भाषा की जानकारी UNESCO वेबसाइट से लेनी पड़े। भारतवर्ष जिसे विश्व विभिन्न संस्कृतियों एवं भाषाओं की विविधता के लिए जानता है, वहीं हम भारतवासी अपने विविधता को पिछड़ापन समझकर अपने इन्द्रधनुषी रंग को बिसराते चले जा रहें हैं। विविध भारत के इंद्रधनुषी रंग में अगर कोई नया रंग ना भर सकें तो कम-से-कम इसे बेरंग होने से बचाएं।
आइए हम अपनी बोली को बचाएं।
आइए हम अपनी बोली को बचाएं।
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